खाटू श्याम को तीन बाण धारी क्यों कहा जाता है?

खाटू श्याम को तीन बाण धारी क्यों कहा जाता है?

खाटू श्याम जी, जिन्हें 'हारे का सहारा' और 'शीश का दानी' भी कहा जाता है, को तीन बाण धारी इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्हें भगवान शिव से तीन चमत्कारी और अभेद्य बाण प्राप्त हुए थे। इन बाणों की शक्ति इतनी अपार थी कि ये पूरी सेना का विनाश कर वापस अपने तरकश में सकते थे।


 
खाटू श्याम को तीन बाण धारी क्यों कहा जाता है?

  बर्बरीक का परिचय और वरदान

पौराणिक कथाओं के अनुसार, खाटू श्याम जी का मूल नाम बर्बरीक था। वह पांडुपुत्र भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र थे। बर्बरीक बचपन से ही वीर और तेजस्वी थे। उन्होंने अपनी माता मौरवी और भगवान श्रीकृष्ण से युद्ध कला का ज्ञान प्राप्त किया था।

उनकी भक्ति और पराक्रम से प्रसन्न होकर, भगवान शिव ने उन्हें ये तीन बाण प्रदान किए थे। इन बाणों की विशेषता यह थी कि:

·         पहला बाण: यह बाण उन सभी चीजों या शत्रुओं को चिन्हित कर सकता था जिन्हें नष्ट करना होता था।

·         दूसरा बाण: इस बाण का उपयोग उन लोगों या चीजों को चिन्हित करने के लिए किया जा सकता था जिन्हें बचाना होता था।

·         तीसरा बाण: यह बाण पहले बाण से चिन्हित सभी वस्तुओं या शत्रुओं को नष्ट कर देता था और फिर वापस तरकश में लौट आता था। यदि दूसरा बाण प्रयोग किया जाता, तो यह तीसरे बाण को यह संकेत देता था कि किन्हें नहीं नष्ट करना है।

इन बाणों में इतनी शक्ति थी कि कहा जाता है कि महाभारत का पूरा युद्ध केवल इन तीन बाणों से ही समाप्त किया जा सकता था।


महाभारत से संबंध और श्रीकृष्ण की लीला

महाभारत युद्ध के दौरान, बर्बरीक ने अपनी मां को वचन दिया था कि वह हमेशा उस पक्ष का साथ देंगे जो कमजोर होगा या हार रहा होगा। वह अपने नीले घोड़े पर सवार होकर इन तीन बाणों और एक शक्तिशाली धनुष के साथ युद्धभूमि की ओर निकल पड़े।

भगवान श्रीकृष्ण, जो बर्बरीक की अपार शक्ति और उनके वचन से भली-भांति परिचित थे, जानते थे कि यदि बर्बरीक युद्ध में शामिल हुए, तो युद्ध का परिणाम बदल जाएगा। इसलिए, उन्होंने ब्राह्मण का वेश धारण कर बर्बरीक की परीक्षा ली। ब्राह्मण बने श्रीकृष्ण ने बर्बरीक का उपहास करते हुए कहा कि वह मात्र तीन बाणों से युद्ध लड़ने जा रहे हैं। इस पर बर्बरीक ने जवाब दिया कि उनका एक ही बाण युद्ध में सभी शत्रुओं का नाश करने के लिए पर्याप्त है।

श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को अपनी दिव्य शक्ति का अनुभव कराया और उनसे युद्धभूमि की शुद्धि के लिए एक सबसे वीर क्षत्रिय के शीश का बलिदान मांगा। बर्बरीक ने अपने वचन के अनुसार सहर्ष अपना शीश दान कर दिया। इस महान बलिदान से प्रसन्न होकर, भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को वरदान दिया कि कलियुग में उन्हें उनके अपने नाम 'श्याम' से पूजा जाएगा और जो भी भक्त सच्चे हृदय से उनका स्मरण करेगा, उनके सभी कष्ट दूर होंगे।


इस प्रकार, अपने तीन चमत्कारी बाणों के कारण ही बर्बरीक को तीन बाण धारी के रूप में जाना जाने लगा, और आज भी लाखों भक्त उन्हें इसी रूप में पूजते हैं।

क्या आप खाटू श्याम जी के बारे में और अधिक जानना चाहेंगे, जैसे उनके मंदिर का इतिहास या उनसे जुड़ी अन्य कहानियाँ?

और नया पुराने

نموذج الاتصال